Wednesday 8 February 2012

“...कुछ और होता हैं “

“...कुछ और होता हैं “

सुनहरी सुबह कुनकुने धूप में,
सड़क किनारे लगे ठेले में,
चाय पीने का मजा कुछ और होता हैं।
जाड़े का महिना,कंपकंपाती ठंड शीतलहर के बीच,
घर से बाहर सडक किनारे जलते अलाव में,
हाथ सेंकने का मजा कुछ और होता हैं।
सर्दी की सितम जब कहर ढाने लगे,
रजाई से मन जब बाहर आने का न करे,
और चाय जब नसीब हो बिस्तर में,
तब चाय पीने का मजा दुगना होता हैं।
शाम का जब वक्त हो,
मौसम बेहद सर्द हो,
और छाई हो बदली,
तो ऐसे मौसम में,
गर्म कपड़े पहन दोस्तों के संग घुमने का मजा कुछ और होता हैं।
दिसंबर के अंतिम सप्ताह में,
कुछ देर के लिए वक्त का ठहरना,
जनवरी के आते ही,
मौसम का बदलना,
फिजाओं में एक अजब सी खुमारी,
और मिजाज मस्ती का कुछ और होता हैं।
ये सब यादें बिते दिनों की,
ये सब बाते बिते दिनों की,
दोस्त,यार , प्यार का मजा कुछ और होता हैं।
वैभव शिव पाण्डेय “क्रांति”

No comments:

Post a Comment

Popular Posts