Wednesday 23 November 2011

छत्तीसगढ़ी गजल , "मोर मन के पीरा"

मोर मन के पीरा
  
अच्छाई उपर बुराई जीतगें।
आज फिर सहर म एक इमानदार पीटगे।

जेन रिपोट लिखाइस तेने होगे अंदर
,
रुपिया के बल म सच झुठ म बदलगे।

बुधारु ह जमीन ल नइ बेचव कहि दिस
,
फेर फर्जी तरीका ले वोखर जमीन बीकगे।

छिनइया छीनत हे लुटइया लुटत हे बिना काही डर,
फेर होवत नइहे कुछू कारवाई मोर त सच्चाई ले भरोसा उठगे।
सुने हव समारु के खेत म प्लांट लगइया हे बड़ रोत हे,
न जाने अतके कतकों किसान हे जेन फोकट म लुटगे।
मंगलु ह आसमान कोति देख भगवान ल कहत ये का होथ हे,

नइ चाहत घलोक हमार खेत-खार,घर-द्वार सब छीनगे।
मुआवजा के मरहम पीरा ल कइसे हरय घाव बड़ गहरा हे,
अब तो केवल सरीरे ल जान जीव हव तो कब के छुटगे।

चिरई-चिरगुन,सुवना-परेवा,बर-पीपर,अमरइया-छइहां,
खोजे नइ मिले, काबर सुने हव गांव उजड़ के सहर बनगे।

वैभव शिव पाण्डेय क्रांति

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