Thursday 19 April 2012

"जो तु समझें या मैं समझूं"

ये दोस्ती हमारी,ये रिस्ता हमारा ।
ये जज्बात हमारे,ये प्यार हमारा।
जो तू समझे या मै समझू ॥

यूं मुलाकातें करना,घंटों बातें करना,
कभी खुलकर तो कभी चोरी छिपे ,
ये ख़ुशी हमारी ये गम हमारा।
जो तू समझे या मै समझू ॥

बातों ही बातों में पुरानी यादों को ताजा कर लेना।
फिर न चाहते हुए भी खुलकर हस लेना ।
ये इंताजर हमारा,ये एतबार हमारा।
जो तू समझे या मै समझू ॥

चाहकर भी जो पा न सके ।
क्यों अपनी दुनिया सजा न सके।
ये किस्मत हमारी,ये लिखा हमारा।
जो तु समझे या मै समझू ॥
वैभव शिव पाण्डेय "क्रांति"

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