कर अतीत को याद हम थोडा रोले,थोडा हंस ले।
नए साल में आवो फिर से कोई बढ़िया सबक ले।
बीत गया सो बीत गया।
जैसा गया पर ठीक गया।
यही सोच हम आपने बुरे वक्त को भूले।
सजाये फिर से नए सपने,
जगाये दिल में नए अरमान।
पुरे विश्वास से भरे,
कल्पनो की नई उड़ान।
बांटे सबका दुःख-दर्द गम अपना-उनका भी पी ले।
खुश रहे हर-पल औरो को भी ख़ुशी दे।
संतोष मन से कहे सदा स्वीकार हमे खुदा तू जो भी दे।
आ सके कुछ औरो के भी काम थोडा ऐसा जीवन भी जी ले।
ऐसे प्रभु के छत्र -छाया में हमारे हर साल हो।
सुख-समृधि,कुशल-मंगल,आनंदमय,उल्लास भरा ये नए साल हो
नए साल की बहुत-बहुत बधाई ....शुभकामनाये ....
वैभव शिव पाण्डेय "क्रांति"
Thursday, 19 April 2012
"जो तु समझें या मैं समझूं"
ये दोस्ती हमारी,ये रिस्ता हमारा ।
ये जज्बात हमारे,ये प्यार हमारा।
जो तू समझे या मै समझू ॥
यूं मुलाकातें करना,घंटों बातें करना,
कभी खुलकर तो कभी चोरी छिपे ,
ये ख़ुशी हमारी ये गम हमारा।
जो तू समझे या मै समझू ॥
बातों ही बातों में पुरानी यादों को ताजा कर लेना।
फिर न चाहते हुए भी खुलकर हस लेना ।
ये इंताजर हमारा,ये एतबार हमारा।
जो तू समझे या मै समझू ॥
चाहकर भी जो पा न सके ।
क्यों अपनी दुनिया सजा न सके।
ये किस्मत हमारी,ये लिखा हमारा।
जो तु समझे या मै समझू ॥
वैभव शिव पाण्डेय "क्रांति"
ये जज्बात हमारे,ये प्यार हमारा।
जो तू समझे या मै समझू ॥
यूं मुलाकातें करना,घंटों बातें करना,
कभी खुलकर तो कभी चोरी छिपे ,
ये ख़ुशी हमारी ये गम हमारा।
जो तू समझे या मै समझू ॥
बातों ही बातों में पुरानी यादों को ताजा कर लेना।
फिर न चाहते हुए भी खुलकर हस लेना ।
ये इंताजर हमारा,ये एतबार हमारा।
जो तू समझे या मै समझू ॥
चाहकर भी जो पा न सके ।
क्यों अपनी दुनिया सजा न सके।
ये किस्मत हमारी,ये लिखा हमारा।
जो तु समझे या मै समझू ॥
वैभव शिव पाण्डेय "क्रांति"
एक सच्चा गणतंत्र बनाये
कहा गण,कहा तंत्र है।
जहा देखों भ्रष्टाचार,
बेईमानी का सड़यंत्र है।
बच न सका न्यायपालिका,कार्यपालिका।
न बचा मीडिया, न विधायिका।
हर कही दाग ही दाग,
मर रहा चार स्तम्भों का लोकतंत्र है।
न बची आजादी ,
न रहे आजादी के दीवाने।
जिसके दमन दागदार,
लगे वाही तिरंगा फहराने। .
कैसी ये व्यवस्था कैसा प्रजातंत्र है।
फिर काहे का गणतंत्र दिवस,
और क्यों हम इसे मनाये।
आवो फिर से एक संकल्प ले आज,
एक सच्चा गणतंत्र बनाये।
वन्देमातरम
वैभव शिव पाण्डेय "क्रांति"
जहा देखों भ्रष्टाचार,
बेईमानी का सड़यंत्र है।
बच न सका न्यायपालिका,कार्यपालिका।
न बचा मीडिया, न विधायिका।
हर कही दाग ही दाग,
मर रहा चार स्तम्भों का लोकतंत्र है।
न बची आजादी ,
न रहे आजादी के दीवाने।
जिसके दमन दागदार,
लगे वाही तिरंगा फहराने। .
कैसी ये व्यवस्था कैसा प्रजातंत्र है।
फिर काहे का गणतंत्र दिवस,
और क्यों हम इसे मनाये।
आवो फिर से एक संकल्प ले आज,
एक सच्चा गणतंत्र बनाये।
वन्देमातरम
वैभव शिव पाण्डेय "क्रांति"
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