आज फिर सहर म एक इमानदार पीटगे।
जेन रिपोट लिखाइस तेने होगे अंदर,
रुपिया के बल म सच झुठ म बदलगे।
बुधारु ह जमीन ल नइ बेचव कहि दिस,
फेर फर्जी तरीका ले वोखर जमीन बीकगे।
छिनइया छीनत हे लुटइया लुटत हे बिना काही डर,
फेर होवत नइहे कुछू कारवाई मोर त सच्चाई ले भरोसा उठगे।
सुने हव समारु के खेत म प्लांट लगइया हे बड़ रोत हे,
न जाने अतके कतकों किसान हे जेन फोकट म लुटगे।
मंगलु ह आसमान कोति देख भगवान ल कहत ये का होथ हे,
अब तो केवल सरीरे ल जान जीव हव तो कब के छुटगे।
चिरई-चिरगुन,सुवना-परेवा,बर-पीपर,अमरइया-छइहां,
वैभव शिव पाण्डेय “क्रांति”