Wednesday 8 February 2012

“छत्तीसगढ़ी गीत” “सूचना के अधिकार”

“छत्तीसगढ़ी गीत”
“सूचना के अधिकार”
सूचना के अधिकार आगे रे ।२
सुन ग कका..सुन ओं काकी ।
सुन ग ममा...सुन ओं मामी ।
लोकतंत्र म सुसासन के अधार आगे रे ।
सूचना के अधिकार आगे रे ।
सूचना के अधिकार आगे न ।

का-का होइस काम कहां ।
कतका मिलिस दाम कहां ।
ये अधिकार के उपयोग ले,
सबो जिनिस ल जान लिहा । २
भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचारी मन ल बुखार आगे रे।
हां जब ले अधिकार आगे रे ।
सूचना के अधिकार आगे रे ।
सूचना के अधिकार आगे न।

संगी-साथी अउ किसान।
पढ़े-लिखें मोर गबरु जवान।
ये अधिकार हे बढ़ सक्तिसाली,
एला जवों तुम पहिचान।२
भ्रष्टाचार ल रोकेबर अंहिसा के हथियार आगे रे...
हां जब ले ये अधिकार आगे रे..
सूचना के अधिकार आगे रे...
सूचना के अधिकार आगे न..
वैभव शिव पाण्डेय “क्रांति”

“...कुछ और होता हैं “

“...कुछ और होता हैं “

सुनहरी सुबह कुनकुने धूप में,
सड़क किनारे लगे ठेले में,
चाय पीने का मजा कुछ और होता हैं।
जाड़े का महिना,कंपकंपाती ठंड शीतलहर के बीच,
घर से बाहर सडक किनारे जलते अलाव में,
हाथ सेंकने का मजा कुछ और होता हैं।
सर्दी की सितम जब कहर ढाने लगे,
रजाई से मन जब बाहर आने का न करे,
और चाय जब नसीब हो बिस्तर में,
तब चाय पीने का मजा दुगना होता हैं।
शाम का जब वक्त हो,
मौसम बेहद सर्द हो,
और छाई हो बदली,
तो ऐसे मौसम में,
गर्म कपड़े पहन दोस्तों के संग घुमने का मजा कुछ और होता हैं।
दिसंबर के अंतिम सप्ताह में,
कुछ देर के लिए वक्त का ठहरना,
जनवरी के आते ही,
मौसम का बदलना,
फिजाओं में एक अजब सी खुमारी,
और मिजाज मस्ती का कुछ और होता हैं।
ये सब यादें बिते दिनों की,
ये सब बाते बिते दिनों की,
दोस्त,यार , प्यार का मजा कुछ और होता हैं।
वैभव शिव पाण्डेय “क्रांति”

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